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बचपन

कहीं गुम हो गई वो मासुमियत
खो गई कहीं वो प्यारी मुसकान
इस असंतोषी भागमभाग भारी ज़िन्दगी में
यादें उन बीते दिनों की
यादें उन गुजरे पलों की
याद आती है फिर
बचपन की वो हँसी फुलवारी
थोड़ा कच्चापन, थोड़ी नादानी
वो हर समय की खेल-कूद
वो हर पल शैतानी
नहीं जानते क्या सही या गलत
नहीं जानते छल-कपट
वो तोतली आवाज़ में बातें
वो हर पल दिमाग में चलती नई खुराफाती
वो हर दिन की नई जिज्ञासा
नए नए प्रश्नों के साथ हाजिर
वो छोटी छोटी लड़ाई दो पल की
फिर मनाना दो पल का
पर ये विडंबना आज की
कि छिन गया है बचपन बच्चो का
अब हाथ में खिलौने या किताबें नहीं
औजार है
नन्हे नन्हें बच्चें पालक है परिवार के
बच्चे काम पर जा रहे है
खो रहा है बचपन
खो रहा है बचपन ।
© ईरा सिंह

ये कविता मैंने कॉलेज में कविता लेखन प्रतियोगिता के लिए लिखी थी। आपको कैसी लगी ?

Thank you so much for reading ……