“मैं बंद पिंजरे में बैठा
हमेशा यही सोचता
क्या जीवन है मेरा
इतनी जंजीरो से बंधा
कैसी होगी वो बाहर की दुनिया
दिनभर बस यही सोचता
मेरे सपने कब होंगे पूरे
कब मैं बाहर आ पाऊंगा
कुछ डर जाता,सहम जाता
जब कोई रास्ता नजर ना आता
पर फिर भी उड़ाने की चाह मैं रखता । “
© ईरा सिंह
मैंने यह कविता बहुत पहले मन में आने वाले अनेकों सवालो के संधर्ब में लिखी थी । कैसे हम आपने सपनो को पूरा करने के लिए हमेशा मेहनत करते है कभी कभी कुछ सपने पूरे होते है कुछ नही पर हमे कभी भी उम्मीद नही छोड़नी चाहिए।
मैनें इस कविता को मेरे लेख क्या कोरोना भगवान का प्रकोप है या मानव उत्तपन आपदा ? में भी प्रयोग किया था परंतु वहां उसका संधर्ब बिल्कुल अलग था ।
मुझे लगा कि ये कविता एक नई पोस्ट में शेयर करनी चाहिए। आशा करती हूं आपको पसंद आई होगी ।
Thank you for reading it !!!!!!!
Stay safe , Stay healthy!!!!!