कभी सोचा है तुमने
ज़िंदगी इतनी भी बुरी नहीं है
देखोगे बैठ कर थोड़ा
खुशियाँ अनेकों अभी -भी मिल जाऐगी
हमेशा विषाद जरूरी नही
क्या परिवार का साथ
वो बैठ कर घंटों बात
एक दूसरे को जानने का एक नया अंदाज़
फिर से वो तुम्हरा छत्तो पर आ जाना
वो फिर पतंग उड़ाना
कभी खुद से तो कभी वो प्रकृति के साथ गुफ्तगू
फिर से पुराने शौक का नया आगाज़
और आजकल सब बन गए है हलवाई
क्यों इन छोटी – छोटी खुशियों से
तुम्हारा मन नही हर्षाता
हर बात पर रोना जरूरी नही
खाने को दो वक्त की रोटी है
सिर पर छत्त है
वेतन कम सही
पर मिल तो रहा है
उनसे पूछो जिनके पास इतना भी नहीं है
क्या कुछ ना होने से कुछ होना अच्छा नहीं है
रोने के हजारों बहाने मिल जायेंगे
खुश होने का एक ही काफी है
परिशनियाँ है माना
पर क्या दुखी होने से
वो हल हो जाएगी
तो क्यों ना थोड़ा मुस्कुराया जाए
अब तुम हँसते हुए जियो या रोते हुए
ये तुम्हारे ऊपर है
पर एक बार बैठ कर सोचना जरूर
ज़िन्दगी इतनी भी बुरी नही है ।
©ईरा सिंह